Chiraag

चिराग

बुझते हुए चिरागों में लो जलाते रहो।
अन्धेरा खुद ही कम हो जाएगा।
सूरज चढ़ने के इन्तज़ार में न रहो।
नहीं तो मुसाफ़िर रास्ता भटक जाएगा।
अन्धेरों में कुछ तो दीपक जलाते रहो।
न जाने कितने भटके हुए को राह मिल ही जाए।
दीपक को कुछ तो अपना काम करने दो।
यह भी ठीक है कि
इस संसार के कष्ट ठीक नहीं कर सकते।
फिर भी घी बन कर दीपक जलाते रहो।
कुछ तो घरों से अन्धेरा जाएगा
सूरज चढ़ने के इन्तज़ार में, अन्धेरों से न डरो।
उस में दीपक बन जश्न मनाते रहो।

दविन्द्र शर्मा

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